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इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट की तत्काल रोक SBI-6 मार्च तक हिसाब दें

सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया है. यह फैसला चुनावी बॉन्ड स्कीम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनाया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड को अज्ञात रखना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19 (1) (a) का उल्लंघन है.

सर्वोच्च अदालत ने इसे असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड को अज्ञात रखना सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19 (1) (a) का उल्लंघन है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों को आर्थिक मदद से उसके बदले में कुछ और प्रबंध करने की व्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि काला धन पर काबू पाने का एकमात्र तरीक़ा इलेक्टोरल बॉन्ड नहीं हो सकता है. इसके और भी कई विकल्प हैं.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को राजनीतिक पार्टियों को मिले इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने का निर्देश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एसबीआई चुनाव आयोग को जानकारी मुहैया कराएगा और चुनाव आयोग इस जानकारी को 31 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा.
इस मामले का नतीजा साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों पर बड़ा असर डाल सकता है.
याचिकाकर्ताओं की दलील:

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना पारदर्शी नहीं है और इसका इस्तेमाल राजनीतिक दलों को गुप्त रूप से धन देने के लिए किया जा सकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि यह योजना चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों के वित्तपोषण पर नजर रखने से रोकती है।

सरकार का पक्ष:

सरकार ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना चुनाव में काला धन लाने को रोकने के लिए शुरू की गई थी।
सरकार ने यह भी कहा कि यह योजना पारदर्शी है और सभी लेनदेन चुनाव आयोग के पास दर्ज हैं।

इलेक्टोरल बॉन्ड एक वित्तीय साधन हैं, जो किसी इंडिविजुअल या फिर संसथान को अपनी पहचान उजागर किये बिना किसी राजनितिक पार्टी को चंदा यानी डोनेशन देने की अनुमति देता है2. यह बांड 1,000 रुपये से लेकर 1 करोड़ रुपये तक का हो सकता है. ये अनुदान ब्याज मुक्त होता है. बांड योजना को सरकार ने 2 जनवरी, 2018 को अधिसूचित किया था. इसे राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया था.

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