आचार्य विद्यासागर महाराज, जैन समुदाय के प्रमुख महावीर, ने छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में समाधि की प्रक्रिया शुरू करके खाना-पानी छोड़ दिया था. उन्होंने मौन व्रत भी लिया था, जिसका मतलब है कि वे बोलना नहीं चाहते थे. आधिकारिक टिप्पणी के अनुसार, आचार्य ने 18 फरवरी को सुबह 2:35 बजे समाधि प्राप्त की.
आचार्य विद्यासागर महाराज का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को शरद पूर्णिमा के दिन कर्नाटक के सदलगा में हुआ था. आचार्य विद्यासागर आचार्य ज्ञानसागर के शिष्य थे और जब उन्होंने समाधि प्राप्त की, तो उन्होंने अपनी आचार्य पदवी को मुनि विद्यासागर को सौंप दिया. 22 नवम्बर 1972 को, 26 वर्ष की आयु में मुनि विद्यासागर ने आचार्य का पदवी ग्रहण किया.
आचार्य विद्यासागर महाराज के अनमोल योगदानों को आने वाली पीढ़ियां याद रखेंगी, खासकर उनके समाज में आध्यात्मिक जागरूकता के प्रयासों, गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और अधिक के लिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके आशीर्वाद को वर्षों तक प्राप्त किया. उन्होंने अपनी यात्रा को याद करते हुए कहा, “मैं अपनी छत्तीसगढ़, डोंगरगढ़ में चंद्रगिरि जैन मंदिर की यात्रा को कभी नहीं भूल सकता। उस समय, मैंने आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज जी के साथ समय बिताया और उनके आशीर्वाद भी प्राप्त किए.
आचार्य विद्यासागर महाराज के निधन के बाद, अनेक नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी. उनके निधन की खबर ने पूरी दुनिया को चौंका दिया और बेहोश कर दिया. आचार्य श्री की जीवनी ने मेरे जीवन पर गहरा प्रभाव डाला, उनके अधिकांश जीवन का समय मध्य प्रदेश की भूमि में बिताया गया और मैंने उनसे बहुत सारे आशीर्वाद प्राप्त किए.
आचार्य विद्यासागर महाराज के निधन के बाद, उनके अनगिनत भक्तों के लिए यह एक अपूरणीय क्षति है5. उनकी यादें और उनके द्वारा दिए गए आशीर्वाद हमेशा हमारे साथ रहेंगे.