ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सर्वे के बाद हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि सर्वे में मंदिर के साक्ष्य मिले हैं। इनमें शिवलिंग, यज्ञ कुंड, स्वास्तिक चिन्ह और अन्य हिंदू धार्मिक प्रतीक शामिल हैं।
इस दावे के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह मामला अब 1991 के पूजा स्थल कानून की परीक्षा में पास हो पाएगा?
1991 का पूजा स्थल कानून कहता है कि 15 अगस्त, 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस रूप में थे, वह उसी रूप में रहेंगे। इस कानून के तहत कोई भी धार्मिक स्थल का धार्मिक स्वरूप नहीं बदला जा सकता।
अगर हिंदू पक्ष के दावे सही साबित होते हैं, तो यह माना जा सकता है कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में पहले एक हिंदू मंदिर था। लेकिन, यह भी माना जा सकता है कि 15 अगस्त, 1947 के बाद मस्जिद के निर्माण के दौरान मंदिर को तोड़ दिया गया था।
इस मामले में फैसला करने के लिए कोर्ट को यह तय करना होगा कि 15 अगस्त, 1947 के बाद ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में क्या बदलाव हुए थे? अगर कोर्ट यह तय करता है कि मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण किया गया था, तो यह माना जा सकता है कि मंदिर का धार्मिक स्वरूप बदल गया है। ऐसे में यह मामला पूजा स्थल कानून की परीक्षा में पास नहीं हो पाएगा।
सर्वे में मिले साक्ष्यों में शामिल हैं:
- शिवलिंग: सर्वे टीम ने ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में एक 12 फीट लंबा शिवलिंग मिला है।
- मंदिर के अन्य अवशेष: सर्वे में मंदिर के अन्य अवशेष भी मिले हैं, जिनमें मंदिर के स्तंभ, मूर्तियां और मंदिर की दीवारों पर हिंदू प्रतीकों का अंकन शामिल है.
ज्ञानवापी: सर्वे में मंदिर का खुलासा तो क्या अब ‘पूजा स्थल कानून’ की परीक्षा में पास हो पाएगा मामला? समझें
वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में हुए सर्वे में हिंदू पक्ष के दावों को बल मिला है। सर्वे में कई ऐसे साक्ष्य मिले हैं जो बताते हैं कि मस्जिद परिसर में पहले एक मंदिर था।
सर्वे में मिले साक्ष्यों में शामिल हैं:
- शिवलिंग: सर्वे टीम ने ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में एक 12 फीट लंबा शिवलिंग मिला है।
- मंदिर के अन्य अवशेष: सर्वे में मंदिर के अन्य अवशेष भी मिले हैं, जिनमें मंदिर के स्तंभ, मूर्तियां और मंदिर की दीवारों पर हिंदू प्रतीकों का अंकन शामिल है।
इन साक्ष्यों के आधार पर हिंदू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद पहले एक हिंदू मंदिर था जिसे मुगलों ने तोड़कर मस्जिद बना दिया था।
हालांकि, मुस्लिम पक्ष इन साक्ष्यों को खारिज कर रहा है। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि शिवलिंग एक फव्वारा है और मंदिर के अन्य अवशेषों को बाद में मस्जिद के निर्माण के दौरान जोड़ा गया था।
पूजा स्थल कानून की परीक्षा
अगर ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मंदिर के अवशेषों का दावा सही साबित होता है, तो यह मामला पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की परीक्षा में पास हो पाएगा या नहीं, यह एक महत्वपूर्ण सवाल है।
इस अधिनियम के मुताबिक, 15 अगस्त, 1947 के बाद किसी भी धार्मिक स्थल के धार्मिक स्वरूप में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है। यह अधिनियम उस समय बनाया गया था जब देश में कई धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद चल रहे थे।
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का मामला भी इसी अधिनियम के तहत विचाराधीन है।
अधिनियम को चुनौती
हिंदू पक्ष का कहना है कि अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 25 के अधिकार का उल्लंघन करता है, जो लोगों को अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता देता है। हिंदू पक्ष का कहना है कि अगर ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मंदिर के अवशेषों का दावा सही साबित होता है, तो यह अधिनियम इस मामले में लागू नहीं होगा।
हालांकि, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 14 के समानता के अधिकार का पालन करता है। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि अगर अधिनियम को इस मामले में चुनौती दी जाती है, तो यह अधिनियम पूरे देश में लागू होने वाले सभी धार्मिक स्थलों के लिए लागू होगा।