रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने हाल ही में अपनी नई मॉनेटरी पॉलिसी की घोषणा की है. इसके अनुसार, रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया है और यह 6.50 प्रतिशत पर अचल रहा है. यह छठी बार है जब रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया है.

रेपो रेट क्या है?

रेपो रेट वह ब्याज दर होती है जिस पर RBI बैंकों को ऋण प्रदान करता है. यह दर आर्थिक गतिविधियों को नियंत्रित करने का एक महत्वपूर्ण साधन होती है. जब RBI रेपो दर में वृद्धि करता है, तो बैंकों के लिए ऋण लेना महंगा हो जाता है, जिससे ऋण की मांग कम हो जाती है. इसके विपरीत, जब RBI रेपो दर को कम करता है, तो बैंकों के लिए ऋण लेना सस्ता हो जाता है, जिससे ऋण की मांग बढ़ जाती है.

रेपो रेट में बदलाव का प्रभाव

रेपो रेट में बदलाव का सीधा प्रभाव बैंकों द्वारा ग्राहकों को दी जाने वाली ऋणों की दरों पर पड़ता है. जब रेपो रेट बढ़ता है, तो बैंकों के लिए RBI से ऋण लेना महंगा हो जाता है. इससे बैंक अपने ग्राहकों से अधिक ब्याज दर वसूलते हैं, जिससे ऋण की लागत बढ़ जाती है. इसके विपरीत, जब रेपो रेट घटता है, तो बैंकों के लिए RBI से ऋण लेना सस्ता हो जाता है. इससे बैंक अपने ग्राहकों से कम ब्याज दर वसूलते हैं, जिससे ऋण की लागत कम हो जाती है.

आर्थिक परिदृश्य

RBI ने वित्तीय वर्ष 2023-24 (FY24) के लिए CPI इन्फ्लेशन का अनुमान 5.4 प्रतिशत रखा है, जिसमें तीसरी तिमाही (Q3) के लिए 5.6 प्रतिशत और चौथी तिमाही (Q4) के लिए 5.2 प्रतिशत की उम्मीद है. ये अनुमान इन्फ्लेशन के दबावों पर सतर्क दृष्टिकोण को दर्शाते हैं, हालांकि हाल ही में हुए परिवर्तनों के बावजूद.

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